कभी-कभी पहाड़ों में हिमस्खमलन सिर्फ एक ज़ोरदार आवाज़ से ही शुरू हो जाता है

Tuesday, November 6, 2012

आर्थिक तंगहाली से नाराज़ जनता के आक्रोष का फ़ायदा उठाकर लोगों को गुमराह कर रहे हैं धार्मिक कट्टरपंथी!


पिछले दिनों अमेरिका में बनी फि़ल्म इनोसेंस आफ मुस्लिम्सको लेकर पूरी दुनिया में कई जगह इस्लामिक संगठनों ने विरोध प्रदर्शन किये। इस फि़ल्म में इस्लाम और पैगंबर मोहम्मद के ऊपर कुछ घटिया टिप्पणियाँ की गई हैं जिसके चलते इस्लाम के अनुयायियों में ख़ासा रोष व्याप्त है। इस फि़ल्म को मुद्दा बनाकर इस्लामिक चरमपंथियों ने उसे अपने फ़ायदे के लिये उसी तरह भुनाना शुरू कर दिया जिस प्रकार हमारे देश में हिंदू चरमपंथी करते हैं! अरब देशों में अमेरिका की साम्राज्यवादी हस्तक्षेपकारी नीतियों के चलते ग़रीबी, बेरोज़ग़ारी, आर्थिक तंगहाली लगातार बढ़ रही है। ऐसे में वहां जनता में अमरीकी साम्राज्यवाद के खि़लाफ़ भारी रोष व्याप्त है। साथ ही इन मुल्क़ों में क्रांतिकारी ताक़तें कुछ ऐतिहासिक कारणों के चलते हमेशा से बहुत कमज़ोर रही हैं। यही कारण है इन मुल्क़ों में आज मुस्लिम युवाओं के अच्छे-खासे हिस्से पर इस्लामी कट्टरपन्थी ताक़तों का प्रभाव न सिर्फ़ क़ायम है बल्कि बढ़ रहा है। इस्लामी कट्टरपन्थ की सर्व-इस्लामवादी वहाबी और सलाफ़ी धाराएं पूरी दुनिया में मुस्लिम युवाओं को प्रभावित कर रही हैं और 9/11 की घटना के बाद अफ़गानिस्तान और इराक़ पर अमेरिकी हमले और वहां पर कब्ज़े के बाद से तो और भी तेजी से बढ़ी हैं। यह एक खुला रहस्य है कि इन कट्टरपन्थी धाराओं को बढ़ाने से लेकर तालिबान और ओसामा बिन लादेन को पैदा करने का काम भी खु़द अमेरिका और पश्चिम के साम्राज्यवादी मुल्क़ों ने किया था, पर आज ये धाराएं भस्मासुर की तरह उन्हें मिटाने पर तुली हुई हैं। ऐसी कट्टरपन्थी इस्लामी धाराएं चाहे जितनी उग्र बातें करें, चाहे जितना साम्राज्यवाद पर हमले करें, पर ये सभी धर्मध्वजाधारी जनता के दुश्मन और पूँजीवादी व्यवस्था के मददगार हैं। जहां कहीं ये सत्ता में आ जाते हैं वहां मेहनतकश जनता का दमन, धार्मिक उत्पीड़न, और आर्थिक शोषण और बढ़ जाता है! मिस्र से लेकर पाकिस्तान तक इस्लाम के नाम पर बनी सरकारें अमेरिकी पूंजीपतियों से सांठगांठ करके यही कर रही हैं! ये सब धाराएं सर्व-इस्लामवाद की बात करती हैं कि सब मुसलमान के हित एक जैसे हैंपर दरअसल ये घनघोर प्रतिक्रियावादी विचारधारा हैक्योंकि यह भूस्वामियों, खानों और मुल्लाओं को मज़बूत करती हैं, ग़रीब मुसलमान के हक़ो/हुक़ूक़ों की क़ीमत पर। शहीदेआज़म भगत सिंह का संदेश बहुत साफ़ था कि झोपड़ी में रहने वाले ग़रीब हिंदू/मुसलमानों के हित हवेलियों और महलों में रहने वाले धनी हिंदू/मुसलमान सेठों के हित से नहीं मिलते! मालिक़ और मज़दूर में दोस्ती कहीं नहीं होती है भले ही दोनों का धर्म और जात कुछ भी हो! आज मसला धर्म का नहीं आर्थिक शोषण का है! आज मसला रोजी, रोटी, रोज़ग़ार, ग़रीबी का है! भूखे भजन ना होय गोपाला, ले ले अपनी कंठी माला! और सभी धर्मों की चरमपंथी धाराएं लोगो का ध्यान इन असली मुद्दों से हटाकर धर्म, जातपात, इलाकाई झगड़ों आदि में लगाकर ग़ैर-मुद्दों को मुद्दा बनाकर लोगों को आपस में लड़वाती हैं और शोषकों के निज़ाम को बदहाल अवाम के गु़स्से से साफ़ बचा ले जाती हैं! यही तो कारण हैकि टाटा, अम्बानी, बिड़ला, डालमिया से लेकर अरब के अय्याश शेख और अमेरिका के कुख्यात पूंजीपति राकफैलर और बिल गेट्स तक सब धार्मिक कट्टरपंथियों को पैसा देते रहे हैं! एक धर्म का कट्टरपंथी दूसरे धर्म के कट्टरपंथी का भाई होता है! भारत में यही काम हिंदू कट्टरपन्थी करते हैं! 1970 से अब तक के जनसंख्या के आंकड़े बताते है कि असम में मुस्लिम आबादी नहीं बढ़ी है पर फिर भी उन्होंने मुस्लिम आबादी का हव्वा खड़ा करके मंहगाईऔर ग़रीबी से बदहाल जनता के ग़ुस्से को मुसलमानों के खि़लाफ़ मोड़ने की कोशिश की! यही काम राज ठाकरे और शिवसेना उत्तर भारतीय मज़दूरों को घुसपैठिया कहकर महाराष्ट्र में करते हैं! सभी धर्मों के कट्टरपंथी धर्म की राजनीति करके इस मानवद्वेषी पूँजीवादी व्यवस्था को ऑक्सीजन देने का काम करते हैं। आज हर जागरूक और संवेदनशील नौजवान का यह फर्ज़ है कि वह भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव के क्रांतिकारी संदेश को देश के कोने-कोने में करोड़ों-करोड़ मज़दूरों-किसानों और नौजवानों तक लेकर जाये। सिर्फ़ तभी हम सही क्रान्तिकारी विकल्प के साथ एक नये समाज के निर्माण की दिशा में क़दम-दर-कदम आगे बढ़ सकेंगे।
संपर्क - जागरूक नागरिक मंच, 9910146445, 9911583733


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