कभी-कभी पहाड़ों में हिमस्खमलन सिर्फ एक ज़ोरदार आवाज़ से ही शुरू हो जाता है

Saturday, August 9, 2014






पूरी दुनिया के स्तर पर सम्राज्यवाद पोषित आतंकी हमलों, सैनिक बमबारी, जाति और धर्म के नाम होने वाले दंगों जैसी अनेक घटनाओं में इंसानियत के खिलाफ हिंसा को उकसा कर अनेक बेकसूर बच्चों, महिलाओं और नागरिकों की हत्या हो रही है। लोगों को इन कार्यवाहियों में ढकेल कर कुछ मुठ्ठीभर कुलीन (elite)अपने आराम को सुनिश्चित करने के मंसूबे पूरे कर रहे हैं, और समाज के नासमझ तबके को गुमराह कर उनका फायदा उठा रहे हैं। जनता युद्ध और हिंसा नहीं चाहती लेकिन हर युद्ध और हिंसा का पूरा बोझ और नुकसान हमेशा आम लोग ही उठाते हैं। ऐसी अराजक स्थिति पैदा करने वाली हर सम्राज्यवादी-पूँजीवादी-फासिस्ट ताकतों का जनता को पुरजोर विरोध करना चाहिये। किसी भी धर्म की हर ऐसी कट्टरपन्थी-मानवद्वेशी ताकतों का विरोध जरूरी है जो लोगों को आपस में जाति या धर्म के नाम पर बाँट कर पूँजीवीवादी-सम्राज्यवादी लूट और खुद की बदहाली के प्रति लोगों को उदासीन बनाने का काम करती हैं। फिर चाहे वह किसी भी देश तथा क्षेत्र में धार्मिक कट्टरपन्थियों द्वारा धर्म के नाम भड़काई जाने वाली हिंसा होे, गाजा में मासूम लोगों की बमबारी में हो रही हत्या हो, या शिया-सुन्नी के नाम पर आतंकवादियों द्वारा जाति के नाम पर की जाने वाली हिंसा हो, या फिर महिलाओं के प्रति पुरुषवादी नजरिये तथा आपराधिक गतिविधियों के तहत होने वाली हिंसा हो। हर परिस्थिति में प्रत्येक इंसाफ पसंद व्यक्ति को बेगुनाह लोगों के प्रति होने वाली हिंसा का खुलकर विरोध करना चाहिये फिर चाहे वह किसी भी देश, जाति, धर्म या समुदाय के प्रति हो रही हो। इसके लिये लोगों को धर्मों-जातियों से ऊपर उठकर एक इँसानियत की भावना के साथ हर सामाजिक अन्याय के विरुद्ध अपनी आवाज़ उठानी होगी और गुमराह करने वाली ताकतों का भण्डाफोड़ करना होगा।






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