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Sunday, October 7, 2012

कौन बनेगा करोड़पति - ज्ञान का महाकुम्भ या लालच और भ्रम फैलाने वाला महातमाशा?



एक बार फ़िर कौन बनेगा करोड़पतिशुरू हो गया है। अमिताभ बच्चन ने इसे ज्ञानके महाकुम्भ की संज्ञा दी है और लोगों के बीच इसका ख़ू़ब प्रचार किया जा रहा है। अमिताभ उपदेश दे रहे हैं कि ज्ञानसे आपको हक़ मिलेगा पर ये नही बताते कि किसको कौन सा हक़ मिलेगा। क्या इस ज्ञानसे उन करोड़ों नौजवानों को हक़ मिलेगा जो रोज़गार की तलाश में सड़कों पर धक्के खा रहे हैं या फिर बेहद कम वेतन पर कम्पनियों की ग़ुलामी कर रहे हैं? क्या इससे उन करोड़ों मज़दूरों को हक़ मिलेगा जो न्यूनतम मज़दूरी से भी कम पर 12-12 घंटे कारख़ानों में खटते हैं और कभी भी निकालकर सड़क पर फेंक दिये जाते हैं? क्या इस तथाकथित ज्ञान से देश की आम जनता को उसका हक़ मिलेगा जो पिछले 65 वर्ष से लूट, शोषण, अन्याय, अत्याचार और भ्रष्टाचार की मार झेल रही है?
 ज़ाहिर है कि अमिताभ बच्चन इसके बारे में कुछ नहीं कहते। वे तो इसके बारे में भी चुप रहते हैं कि आख़िर कौन है जो देश के लोगों का हक़ मार रहा है? कहें भी तो कैसे कहें? सच तो यह है कि लोगों को उनके हक़ों से वंचित करने वाले उसी वर्ग के लोग हैं जो उनके कार्यक्रम के निर्माता और प्रायोजक हैं, विज्ञापनदाता हैं! केबीसी का नया नारा हैकि आपको आगे बढ़ना हैतो ज्ञान प्राप्त करना होगा! यहाँ आगे बढ़ने का मतलब हैधनी बनना!यही आज के पूँजीवादी समाज का मूलमंत्र है - किसी भी तरीक़े से आगे बढ़ो, दूसरों के सिर पर चढ़कर आगे बढ़ो! किसी भी ढंग से पैसा कमाओ, सफल बनो, अमीर बनो। अब अगर ज्ञान का उपयोग भी अमीर बनने में हो सकता है, तो पैसे के पीछे भागते लोग इस ज्ञानको भी भुनाने में लग जायेंगे। इस चक्कर में उन्हें हक़मिले या न मिले, पर अमिताभ, टीवी चैनल और विभिन्न कम्पनियों की तिजोरियाँ ज़रूर भर जायेंगी!
ज्ञान से ही हक़ मिलेगा, इस बात में सच्चाई है! लेकिन सवाल है कि कौन-सा ज्ञान? क्या जनरल नाँलेज की किताबें रटने से मिलने वाला ज्ञान, जो समाज में किसी काम नहीं आता? या वह ज्ञान जो इस दुनिया और समाज की सच्चाई को हमारे सामने उजागर करता है? वह ज्ञान जो इस दुनिया को बदलने की राह दिखाता है? वह ज्ञान जिसके बारे में भगत सिंह ने कहा था कि क्रान्ति की तलवार विचारों की सान पर तेज़ होती है!
सवाल यह भी है कि आज ज्ञान पर किसका हक़ है, और ज्ञान किसके लिए है? ज्ञान मानवजाति की सामूहिक सामाजिक सम्पदा है, किसी व्यक्ति की निजी सम्पत्ति नहीं! ज़्यादातर पढ़े-लिखे लोगों को लगता है कि उन्होंने अपनी कड़ी मेहनत से ज्ञान हासिल किया है पर वे भूल जाते हैं कि करोड़ों मेहनतकश जनता के कठोर श्रम के बिना उनका ज्ञानी बनना सम्भव ही नहीं होता। उनकी मेहनत की बदौलत न सिर्फ हमें आरामदेह जीवन, स्कूल-कालेज-प्रयोगशालाएं और किताबें प्राप्त होती हैं बल्कि उत्पादक कार्रवाइयों के अनुभवों से ही मानवजाति का समस्त ज्ञान भी पैदा हुआ है। मगर इस वर्ग समाज में जो ख़ुद श्रम करते हैं वे अज्ञानी ही रह जाते हैं और ज्ञान कुछ लोगों की निजी सम्पत्ति बन जाता है!
लोगों को उनका हक़ मिले इसके लिए ज्ञान की मशाल को लेकर लोगों के बीच जाना होगा। राहुल सांकृत्यायन, राधामोहन गोकुलजी, गणेशशंकर विद्यार्थी जैसे बुद्धिजीवियों की परम्परा को आगे बढ़ाना होगा जिन्होंने अपने ज्ञान का इस्तेमाल दौलत और शोहरत पाने के लिए नहीं, बल्कि ग़ुलामी, शोषण-उत्पीड़न व अत्याचार से मुक्ति के लिए जनता को जगाने और संघर्ष  में उसे राह दिखाने के लिए किया। 
  ज्ञान पर सबका हक़ हो और सबको अपने सारे हक़ मिलें इसके लिए लोभ-लालच और मुनाफ़े पर टिके समाज के ढाँचे को बदलकर एक ऐसा समाज बनाना होगा जो लुटेरों और वंचितों में बँटा न हो, जिसमें आम लोगों के दुखों के सागर में ऐश्वर्य के चन्द टापू और विलासिता की मीनारें न खड़ी हों, जिसमें बराबरी, सामूहिकता और भाईचारा हो। मगर ऐसा समाज केबीसी की हाटसीटपर बैठकर निरर्थक सवालों के जवाब देने से नहीं बनेगा, बल्कि इसके लिए हमें समाज में वास्तविक सवालों के वास्तविक जवाब ढूँढ़ने होंगे!

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