कभी-कभी पहाड़ों में हिमस्खमलन सिर्फ एक ज़ोरदार आवाज़ से ही शुरू हो जाता है

Saturday, November 30, 2013

हमें चुनना यह है कि इलेक्शन या इंक़लाब ?

केवल एक ही रास्ता - इंक़लाब!




जबसे चुनावों की घोषणा हुई है तबसे मीडिया में फ़ालतू की बहसों-बकवासों का ज्वार आया हुआ है! तमाम किस्म के बाज़ारु, टकसाली विश्लेषकऔर पूंजीवादी अखबारों के कलमघसीट सम्पादक तथा पत्रकार असली मुद्दों से जनता का ध्यान भटकाने के लिये नकली मुद्दे गढ़ कर उन पर लगातार बकवास कर रहे हैं! आज देश की 65 फ़ीसदी आबादी ग़रीबी रेखा के नीचे है, 77 फ़ीसदी आबादी 20 रुपया रोज़ पर जैसे-तैसे इस मँहगाई में जी रही है, बेरोज़ग़ारी सुरसा के मुँह की तरह बढ़ती जा रही है, सरकार लगातार अंधाधुंध ठेकाकरण, निजीकरण किये जा रही है। आम जनता को सम्मानजनक जीवन जीने के लिये रोटी, कपड़ा, मकान, स्वास्थ्य और शिक्षा की आवश्यकता होती है। पर आज सरकार ने उक्त सभी चीजों के साथ-साथ बिजली, पानी, गैस, तेल, आदि को भी निजी व्यापारियों के हवाले कर दिया है जो जनता को लूटकर अपनी तिजोरियां भर रहे हैं। तमाम चुनावी पार्टियों में इन्हीं लुटेरी नीतियों को देश में लागू करने पर आम सहमति है चाहे वह कांग्रेस-भाजपा हो या नकली लाल झण्डे उड़ाने वाली सीपीआई-सीपीएम!!

उधर पूँजीवादी जनतन्त्र का चौथा खम्बा यानी मीडिया भी जनता को सच बताने के बजाये भ्रम का धुंआ खड़ा करके, मोदी बनाम राहुल के नकली विकल्पों को हमारे सामने असली विकल्प के तौर पर पेश कर रहा है! मीडिया शासक वर्गों की लुटेरी नीतियों के पक्ष में चालाकी के साथ आम सहमतिबनाने के काम में लगा हुआ है। पूरा मीडिया जानबूझकर राहुल बनाम मोदी की वाहियात बहस चला रहा है, बीच-बीच में इसमें संघ पर बैन लगाने वाले पटेल को भी घसीट लिया जाता है। पर मीडिया कभी इस कड़वे सच को नहीं बताता कि जनता की दुर्दशा की जि़म्मेदार मुनाफ़े और लालच पर टिकी पूरी पूंजीवादी व्यवस्था है, और पूरी बहस को केवल कुछ चंद लोगों के इर्द-गिर्दसमेट दिया जाता है।आज समय है कि सांपनाथ या नागनाथ में से किसी एक को चुनने के बजाये हम शहीदे-आज़म भगत सिंह के रास्ते पर चलते हुये क्रांतिकारी विकल्प खड़ा करें!



Saturday, November 2, 2013

अपनी असुरक्षा से



गर देश का अमन ऐसा होता है
कि कर्ज़ के पहाड़ो से फिसलते पत्थरो की तरह
टूटता रहे अस्तित्व हमारा
और तनख़्वाहों के मुँह पर थूकती रहे
कीमतो की बेशर्म हँसी
कि अपने रक्त में नहाना ही तीर्थ का पुण्य हो
तो हमें अमन से खतरा है

गर देश की सुरक्षा ऐसी होती है
कि हर हड़ताल को कुचलकर अमन को रंग चढ़ेगा कि वीरता बस सरहदों पर मरकर परवान चढ़ेगी
कला का फूल बस राजा की खिड़की मे ही खिलेगा
अक्ल, हुक्म के कुएँ पर रहट की तरह ही धरती सींचेगी
मेहनत, राजमहलों के दर पर बुहारी ही बनेगी
तो हमें देश की सुरक्षा से ख़तरा है।
                            -पाश



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