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Saturday, July 18, 2015

योग और भारत में जनता के स्वास्थ्य की स्थिति (Healthcare in India)



21 जून को विश्व योग दिवस बीत चुका है और अब योग का ख़ुमार उतार पर है। लेकिन यहाँ हम योग की बात नहीं करेंगे, लेकिन चूकि योग का पूरा प्रचार जनता के स्वास्थ्य से जोड़ कर किया जा रहा है इसलिये हम देश में आम जनता को मिलने वाली स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति और सरकार द्वारा उनके लिये उठाये जा रहे कदमों की बात करेंगे। मई में मातृत्व के लिये अनुकूल परिस्थितियों के आधार पर दुनिया के 179 देशों की सूची प्रकाशित की गई थी जिसमें भारत पिछले साल के 137वें स्थान से 3 पायदान नीचे खिसक कर 140वें स्थान पर पहुँच गया है। यूँ तो दोनों में कोई खास अन्तर नहीं है, लेकिन यह विकास के खोखले नारों के पीछे की हकीकत बयान कर रही है, कि देश में आम जनता के जीवन स्तर में सुधार होने की जगह पर परिस्थितियाँ और भी बदतर हो रही हैं। भारत अब माँ बनने के लिये सुविधाओं के हिसाब से जिम्बाब्वे, बांग्लादेश और इराक से भी पीछे हो चुका है। BRICS देशों की तुलना में मलेरिया जैसी आम बीमारियों के मामले भारत में कई गुना अधिक रिपोर्ट होते हैं जिनसे बड़ी संख्या में मरीजों की मौत हो जाती है। भारत में हर साल मलेरिया के 10,67,824 मामले रिपोर्ट होते हैं जबकि चीन और साउथ-अफ्रीका में यह संख्या 5,000 से भी कम है। भारत में हर दिन कैंसर जैसी बीमारी से हर दिन 1,300 लोगों की मौत हो जाती है, और यह संख्या 2012 से 2014 के बीच 6 प्रतिशत बढ़ चुकी है।
ऐसी स्थिति में स्वास्थ्य सुविधाओं को बढ़ाने की जगह पर वर्तमान सरकार ने सार्वजनिक स्वास्थ्य पर खर्च किये जाने वाले खर्च में भी 2014 की तुलना में 29 फीसदी कटौती कर दी। 2013-14 के बजट में सरकार ने 29,165 करोड़ रूपये स्वास्थ्य सुविधाओं के लिये आवंटित किये थे जिन्हें 2014-15 के बजट में घटाकर 20,431 करोड़ कर दिया गया है। पहले ही भारत अपनी कुल जीडीपी का सिर्फ 1.3 फीसदी हिस्सा सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं पर खर्च करता है, और भारत में 10,000 की आबादी पर डॉक्टरों की संख्या 7 है, जो BRICS देशों की तुलना में सबसे कम है। सार्वजनिक-स्वास्थ्य-सुविधाओं में कटौती के साथ-साथ हद यह है कि सरकार ने फार्मा कम्पनियों को 509 बुनियादी दवाओं के दाम बढ़़ाने की छूट दे दी है, जिनमें डायबिटीज, हेपेटाइटस-बी सी, कैंसर, फंगल-संक्रमण जैसी बीमारियों की दवाओं के दाम 3.84 प्रतिशत तक बढ़ जायेंगे। मुनाफ़ा केन्द्रित पूँजीवादी व्यवस्था का ढाँचा कितना असंवेदनशील और हत्यारा हो सकता है यह इस बात से समझा जा सकता है कि स्वास्थ्य-सुविधा जैसी बुनियादी जरूरत भी बाजार मे ज्यादा-से-ज्यादा दाम में बेंच कर मुनाफे की हवस पूरी करने में इस्तेमाल की जा रही हैं। यह सभी आंकड़े अच्छे दिनों और विकास का वादा कर जनता का समर्थन हासिल करने वाली वर्तमान सरकार का एक साल पूरा होने से थोड़ा पहले के हैं जो यह दर्शाता है कि भविष्य में इस मुनाफ़ा केन्द्रित व्यवस्था के रहते ‘‘विकास’’ की हर एक नींव रखी जाने के साथ जनता के लिये और भी बुरे दिन आने वाले हैं।


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