“Any man who stands for progress has to criticize, disbelieve and challenge every item of the old faith. Mere faith and blind faith is dangerous: it dulls the brain, and makes a man reactionary."
Bhagat Singh,
Why I am an atheist? (1930)
Voltaire
मुझसे कहा जाता है :
तुम खाओ-पीओ !
ख़ुश रहो कि
ये तुम्हें नसीब हैं।
पर मैं कैसे खाऊँ, कैसे पीऊँ, जबकि
अपना हर कौर किसी भूखे से छीनता हूँ, और
मेरे पानी के गिलास के लिए कोई प्यासा तड़प रहा हो ?
फिर भी मैं खाता हूँ और पीता हूँ।
ये तुम्हें नसीब हैं।
पर मैं कैसे खाऊँ, कैसे पीऊँ, जबकि
अपना हर कौर किसी भूखे से छीनता हूँ, और
मेरे पानी के गिलास के लिए कोई प्यासा तड़प रहा हो ?
फिर भी मैं खाता हूँ और पीता हूँ।
सचमुच, मैं एक अँधेरे वक़्त में
जीता हूँ!