कभी-कभी पहाड़ों में हिमस्खमलन सिर्फ एक ज़ोरदार आवाज़ से ही शुरू हो जाता है

Saturday, May 28, 2011

जड़तापूर्ण समय में

''यदि केवल शब्दों के द्वारा ही किसी जड़ पदार्थ पिंड को गतिमान करना हो तो इस काम की कठिनाइयों की कोई सीमा नहीं है। लेकिन यदि कोई भी भौतिक शक्ति तुम्हारे साथ नहीं है तो कोई दूसरा रास्ता भी नहीं है।...और कभी-कभी पहाड़ों में हिमस्‍खलन सिर्फ एक ज़ोरदार आवाज़ से ही शुरू हो जाता है।''

1947 से पहले हमारे देश के कुछ नौजवान क्रांतिकारियों ने आज़ाद भारत के भविष्य के निर्माण के लिये जो सपने देखे थे, जिसके लिए उन्होंने कुर्बानियाँ दी थीं, वे सपने आज भी अधूरे हैं।
आज आजादी कुछ मुठ्ठीभर लोगों तक सीमित रह गई है। यही मुट्ठीभर लोग देश की मेहनतकश बहुसंख्यक आबादी द्वारा पैदा किये हुए संसाधनों पर ऐश कर रहे हैं और दूसरी तरफ, समाज की 80 फ़ीसदी आबादी जानवरों की तरह जीने के लिए मजबूर है, बावजूद इसके कि एक गरिमामय जीवन जीने के लिये आवश्यक सभी संसाधन और उद्योग मौजूद हैं ।
आज दो वक्‍़त की रोटी और सम्मान से जीने के संघर्ष में करोड़ों लोग अपना पूरा जीवन लगा देते हैं, और फ़ि‍र भी उन्हें चैन से जीने का मौका नहीं मिलता। जहाँ करोड़ों लोगों के व्यक्तित्व को पूँजी से कुचला जा रहा है, जहाँ समाज के सारे रिश्ते-नाते आने-पाई के बर्फीले सागर  में डुबो  दिए गए हैं। किसी के पास संपत्ति न हो तो पूरे समाज के लिए उसके जीवन का कोई मूल्य नहीं रह जाता, क्योंकि आज व्यक्ति का नहीं बल्कि उसकी सम्पत्ति का सम्मान किया जाता है। ऐसे निराशापूर्ण दौर मे बेरोज़गारी, ग़रीबी, भ्रष्टाचार, घूसखोरी, दहेज के लिए महिलाओं को ज़ि‍दा जलाने की घटनाओं का होना, चिकित्सा ना मिलने से हर दिन हज़ारों बच्चों की मौत हो जाना जैसी घटनाये आम बात हो चुकीं हैं। क्या यही वह आज़ादी हैं जिसके लिए अनेक शहीदों नें अपने प्राणों की आहुति दी थी?
नहीं! भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरू, चंद्रशेखर आज़ाद, भगवतीचरण वोहरा आदि नौजवान क्रांतिकारियों ने ऐसा भारत बनाने के लिए अपना जीवन न्‍योछावर नहीं किया था!
ऐसे समय में कोई नौजवान सारी दुनिया से कटकर सिर्फ़ अपने लिये कैसे जी सकता हैं? आज जिस दौर में हम खड़े हैं, जिन परिस्थितियों में हम जी रहे हैं, और करोड़ों मेहनतकश लोग ज़ि‍न्दा रहने के लिये संघर्ष कर रहे हैं, ऐसे समय में क्‍या हर संवेदनशील व्यक्ति को एक नई शुरुआत करने और चीज़ों को बदलने के लिये आगे नहीं आना चाहिये?
इस दीवार पत्रिका के माध्यम से हमारा प्रयास है कि तमाम संवेदनशील नागरिकों का आह्वान  करें और एक बेहतर समाज का निर्माण करने के लिये मिलजुल कर प्रयास किया जायें ।


1 comment:

  1. Good initiative!...All the best! Hope you'll get right people to work along in right direction...

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