कभी-कभी पहाड़ों में हिमस्खमलन सिर्फ एक ज़ोरदार आवाज़ से ही शुरू हो जाता है
Saturday, October 26, 2013
Thursday, October 17, 2013
जाति-धर्म के झगड़े छोड़ो, सही लड़ाई से नाता जोड़ो [- भगत सिंह]
साथियो, धर्म की राजनीति के नाम पर देश को दंगों की आग में झोंकने के शासक
वर्ग के मंसूबों को नाकाम करने के लिए आपस में फ़ौलादी एकता कायम करो!
अभी हाल ही में मुज़फ़्फ़रनगर और
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई जिलों में हुए दंगों में 50 से ज्यादा लोग मारे गए, कई हज़ार लोग अब भी लापता हैं तथा 40 हज़ार से ज़्यादा लोग अपने घरों से
उजड़ कर कैंपो में रहने को मजबूर हैं। लोगों को जाति-धर्म के नाम पर भड़काकर दंगों
की आग में झोंक देने की यह पहली घटना नही है, बल्कि
अभी कुछ समय पहले जम्मू के किश्तवाड़ा, मध्यप्रदेश
और देश के कुछ और राज्यों में भी सांप्रदायिक ताक़तों द्वारा सुनियोजित तरीके से
लोगों को दंगा करने के लिये उकसाया गया। तमाम चुनावी पार्टियाँ चुनाव नजदीक आता
देख जनता को दंगो की आग मे झोंककर अपनी-अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेंकने मे लगी हुई हैं।
कांग्रेस व सपा हमेशा की तरह अपना दुरंगा पाखण्डी चरित्र दिखाते हुये हिंदू वोट के
लिये कभी नरम केसरिया लाईन लागू करती हैं तो कभी मुस्लिम वोट पाने के लिये चालाकी
के साथ ‘धर्मनिरपेक्षता‘ की बगुला-भगती बातें करती हैं। तो
दूसरी ओर आर.एस.एस और भा.ज.पा सत्ता पाने के लिये अपनी फा़सीवादी गरम केसरिया
चालें चलते रहते हैं। 1984 के दंगों में बेकसूर सिक्ख नागरिकों
के कत्लेआम में कांग्रेस की और गुजरात के दंगों का नेतृत्व करने में संघ की भूमिका
सर्वविदित है। इसके बावजूद वैचारिक मतिभ्रम के शिकार कई लोग कांग्रेस-सपा को ‘‘सैक्युलर‘‘ और संघ परिवार को ‘‘राष्ट्रवादी‘‘ कहते नहीं थकते! क्या लोगों को यह नंगी
सच्चाई नज़र नहीं आती है?!
दरअसल इन तमाम चुनावी पार्टियों में
कोई अंतर है ही नहीं! कोई सांपनाथ है तो कोई नागनाथ! इसलिये
हमें लगता है कि अब समय आ गया है कि हम एक क्रांतिकारी राजनीतिक विकल्प की बात
करें - भगत सिंह और उनके आदर्शों की बात करें और उसे लागू करें!
पिछले 66 सालों के शासन के बाद आज देश की 65 फ़ीसदी
आबादी ग़रीब है और 77 फ़ीसदी की औसत आय मात्र 20 रुपया रोज़ है और ये सभी चुनावी
धंधेबाज़ जानते हैं कि महँगाई-ग़रीबी-बेरोज़ग़ारी की मार झेल रही जनता को
जाति-धर्म के नाम पर लड़ाया नहीं गया तो वह एकजुट होकर लूट और लालच पर टिकी पूरी
पूँजीवादी व्यवस्था को ही उखाड़कर इतिहास की कचरापेटी के हवाले कर देगी। यही कारण
है कि ये तमाम चुनावी मदारी जात-धर्म
की गंदी राजनीति करते हैं। इसलिये हम लोगों को इन चुनावी पार्टियों की असलियत का
भण्डाफोड़ करके जनता को बताना चाहिये कि ये पार्टियाँ देश की आम मेहनतकश जनता के
लिये नहीं बल्कि टाटा, बिरला, और अंबानी के लिये हैं। भगत सिंह ने भी कहा था कि "लोगों को परस्पर लड़ने से रोकने के लिए
वर्ग-चेतना की ज़रूरत है। ग़रीब मेहनतकशों और किसानों को स्पष्ट समझा देना चाहिए
कि तुम्हारे असली दुश्मन पूँजीपति हैं, इसलिए
तुम्हें इनके हथकण्डों से बचकर रहना चाहिए और इनके हत्थे चढ़कर कुछ न करना चाहिए।"
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