

ऐसे समय में कोई भी विचारशील व्यक्ति सिर्फ मूकदर्शक बनकर नहीं रह सकता। आज हमें परिस्थियों को बदलने के लिए विकल्प की तलाष करनी होगी और समाज के एक नए ढांचे का सृजन करने के लिए आगे आना होगा। अब से लगभग 106 साल पहले रुसी मेहनतकश जनता की भयंकर दुर्दशा को देखकर जनता के महान लेखक गोर्की ने जो पंक्तियां लिखी थीं वो आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं - “क्या हम सिर्फ़ यह सोचते हैं कि हमारा पेट भरा रहे? बिल्कुल नहीं।“ “हमें उन लोगों को जो हमारी गर्दन पर सवार हैं और हमारी आँखों पर पट्टियाँ बाँधे हुए हैं यह जता देना चाहिए कि हम सब कुछ देखते हैं? हम न तो बेवकूफ हैं और न जानवर कि पेट भरने के अलावा और किसी बात की हमें चिन्ता ही न हो। हम इंसानों का सा जीवन बिताना चाहते हैं! हमें यह साबित कर देना चाहिए कि उन्होंने हमारे ऊपर खून-पसीना एक करने का जो जीवन थोप रखा है, वह हमें बुद्धि में उनसे बढ़कर होने से रोक नहीं सकता!“ -( गोर्की के उपन्यास ‘माँ’ से)