पिछले साल पूरी दुनिया में अनेक जगह बाढ़, भूकंप और सुनामी से होने वाली प्राकृतिक तबाहियों की कई घटनाएँ हुईं और अनेक लोग मौत के शिकार हुए व हजारों बेघर हो गए। पूरी दुनिया के वातावरण की तबाही से जिस प्रकार के असंतुलन पैदा हो रहे हैं उनके लिए जिम्मेदार अनेक कारणों में से सबसे मुख्य कारण है मुनाफ़े और साम्राज्य विस्तार के लिये मची होड़, जिसकी तरफ़ किसी का ध्यान नहीं जाने दिया जाता। पिछले दिनो डरबन में वातावरण परिवर्तन से आम जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों पर बातचीत के लिए कई देशों के प्रतिनिधियों का सम्मेलन हुआ, जिसमें "वातावरण को बचाने" के लिए बड़ी-बड़ी नीतियों के दस्तावेजों का आदान-प्रदान हुआ और सम्मेलन "सम्पन्न" हो गया।

विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार पूरी दुनिया में उत्सर्जित होने वाली कुल ज़हरीली गैसों का 50 प्रतिशत हिस्सा ऊपर की 7 प्रतिशत अमीर आबादी का है (EPW, Vol XLVI No-46 November 12, 2011)। यदि इसे रोका न गया तो आने वाले समय में आम जनता को अनेक प्रकार की तबाहियों से गुज़रना पड़ेगा। जबकि वातावरण को तबाह करने में आम जन का योगदान नगण्य है। कारख़ानों से हर दिन लाखों टन कचरा और गैसें निकलती हैं जो लगातार वातावरण को बर्बाद कर रहीं हैं। जबकि इन ज़हरीली गैसों और कूड़े को साफ़ करने और रोकने की सभी तक़नीकें आज मौज़ूद होने के बाद भी ज्य़ादातर कारख़ाने ज़्यादा मुनाफ़े के चक्कर में उनका इस्तेमाल नहीं करते। एक सवाल यह भी है कि ज़्यादा मुनाफ़ा कमाने की होड़ में लगे कारख़ाने प्रदूषण कम करने की किसी भी मौजूदा तक़नीक में निवेश क्यों करेंगे?
वातावरण को बचाने के नाम पर अनेक संस्थाएँ अपनी तुष्टि के लिये कुछ प्रदर्शन और अभियान चलाती रहती हैं, और संसाधनों की बर्बादी और प्रदूषण को रोकने के लिये प्रचार करती रहती हैं। लेकिन ये संस्थाएँ पूरे वातावरण की बर्बादी के लिये जि़म्मेदार अराजकतापूर्ण मुनाफ़ा-केन्द्रित व्यवस्था पर कभी कोई सवाल नहीं उठातीं। मुनाफ़ा-केन्द्रित उत्पादन और बाज़ार की होड़ के रहते हुए प्राकृतिक सम्पदा की बर्बादी और वातावरण को तबाह होने से नहीं रोका जा सकता। यह एक विचार करने और विचारों को अमल में लाने का समय है, जो अपनी पूरी आवश्यकता के साथ हमें सचेत कर रहा है।