कभी-कभी पहाड़ों में हिमस्खमलन सिर्फ एक ज़ोरदार आवाज़ से ही शुरू हो जाता है

Sunday, March 9, 2014

नेता-पूँजीपति खुशहाल, जनता बेहाल, यही है असलियत भारतीय ‘‘लोकतंत्र‘‘ की



देश में क बार फिर चुनावी नौटंकी का दौर शुरू हो चुका है। सभी चुनावी पार्टियां नयी-नयी तरकीबों से  जनता को लुभाने की कोशिश में लगी हुई हैं - चाय की प्याली से लेकर अलग-अलग रंगो की टोपियां पहनाने का सिलसिला सा चल पड़ा है -कोई कुल्हड़ में चाय पिलाता था तो अब कोई चीनी-मिटटी के प्याले में सांप्रदायिकता की जहरीलीचाय परोस रहा है, कोई सफ़ेद टोपी पहने खुद को ईमानदारी का प्रतिनिधि समझता है तो, कोई जनता को लाल, नारंगी, नीली, तिरंगी और तरह-तरह के रंगों वाली टोपियां पहना रहा है। इस तमाम हो-हल्ले के बीच, जो सवाल अब भी जनता के सामने मौज़ूद हैं, वे हैं कि, देश में व्याप्त बेरोज़गारी, ग़रीबी, भुखमरी और भ्रष्टाचार के मूलभूत कारण क्या हैं? क्या केवल चुनावी पार्टियों की अदला-बदली से ही देश की स्थिति बदली जा सकती है, या फिर, इस लूट-खसूट पर टिकी जनता की मेहनत के दम पर मुनाफ़ा निचोड़ने वाली व्यवस्था का कोई क्रांतिकारी विकल्प खड़ा करने की आवश्यकता है।



इन सवालों पर काफी संजीदगी विचार करने की आवश्यकता है। परन्तु, उससे पहले इस समय देश में जिन तीन प्रमुख चुनावी दलों की चर्चा ज़ोरों पर है, उनकी सच्चाइयों पर एक-एक करके संक्षेप में नज़र डालते हैं

भाजपा - अपनी जीत को लगभग अवश्यम्भवी मानकर कुलांचें भर रही भाजपा जब भी भ्रष्टाचार मुक्त भारत की बात करती है, तो वह अपने सांसदों पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों पर कुछ नहीं बोलती। ताबूत घोटाला, हथियार घोटाला और अन्य कई घोटालो  के साथ-साथ ही सी.ए.जी ने हाल ही में गुजरात में 500 करोड़ की गड़बड़ियों की ओर इशारा किया है। हर समय शाइनिंग-गुजरात का राग अलापने वाली भाजपा यह नहीं बताती कि ठीक इसी तरह की आर्थिक नीतियों को लागू करते हुए भारत-निर्माण का ठीक यही मॉडल कांग्रेस ने भी पिछली सदी में दिया था जिसके परिणामस्वरूप आज खुले रूप में पूंजीवादी लूट कायम है और जहां एक ओर तो 77 प्रतिशत आबादी की आमदनी 20 रूपए प्रतिदिन से भी कम है, वहीँ कुछ लोग अपनी अय्याशी के लिए नए-नए तरीके इज़ाद करने में लगे रहते हैं - जैसे कि आईपीएल, फार्मूला वन इत्यादि।  विकास-पुरुष मोदी द्वारा शासित गुजरात देश का सबसे ऋणी प्रदेश है। ग्लोबल हंगर इण्डेक्सके अनुसार, गुजरात भारत के पाँच सबसे पिछड़े राज्यों में आता है, और  प्रसव के समय स्त्रीयों  की मृत्यु की दर भी गुजरात में सबसे ऊपर है।

 कांग्रेस -  कांग्रेस के बारे में हमें जनता को कुछ नया बताने की आवश्यकता नहीं है। ऐसा करना महज समय की बर्बादी होगी! कांग्रेस ही वह पार्टी हैजिसने भूमंडलीकरण और नव-उदारवाद के नाम पर श्रम की खुली लूट, और इस लूट के दम पर समाज के एक छोटे से मध्यवर्गीय हिस्से के सामने कुछ टुकड़े फेंकते हुए इस लूट के समर्थन में आधार तैयार किया जिसके कारण आज देश की बहुसंख्यक आबादी मंहगाई, बेरोज़गारी, ग़रीबी की मार से बदहाल है।

आप - आम आदमी के नाम को लेकर बनाई गयी खास लोगों की इस पार्टी के लिए देश की 77 प्रतिशत मेहनतकश आबादी  आम जनतामें ही नहीं आती है! भ्रष्टाचार-मुक्त भारत का नारा लगाने वाले ‘‘ईमानदार‘‘ केजरीवाल कभी भी पूंजीवाद द्वारा श्रम की लूट का विरोध नहीं करते। केजरीवाल कभी ये नहीं बताते कि श्रम ही लूट ही असली भ्रष्टाचार है। इनकी नज़रों में मेहनतकश जनता के श्रम से पैदा होने वाला करोड़ों का मुनाफ़ा भ्रष्टाचार की श्रेणी में आता ही नहीं है। उनकी नज़र में श्रम की लूट पूंजीपति का वैधिक अधिकार है। ये बात तब और भी साफ़ हो गयी जब 6 फ़रवरी को केजरीवाल के श्रम मंत्री ने श्रम के ठेकाकरण के खिलाफ़ क़ानून बनाने से साफ़ मना कर दिया क्योंकि श्रम मंत्री  खुद एक चमड़ा क़ारखाने के मालिक हैं और अपने यहां सारे मज़दूर ठेके पर रखकर श्रम क़ानून लागू नहीं कराते हैं! ऐसे आदमी को केजरीवाल ने श्रम (बेशरम) मंत्री बना रखा है! और लोकसभा चुनाव देखते हुये ‘‘केजरीवाल एंड कंपनी‘‘ टमाटो सौस पोत कर 'शहीद' बनने का नाटक करके पतली गली से निकल गयी ताकि लोकसभा चुनाव में अपनी लोट लाल की जा सके।

इस पूरी चुनावी नौटंकी का मुख्य उद्देश्य लोगों के बीच भ्रम पैदा कर मेहनतकश जनता के शोषण को  पूंजीपतियों के मुनाफ़े में इज़ाफ़े हेतु ज़ारी रखना है। सत्ता में चाहे कोई भी चुनावी दल आये, इससे मेहनतकश आम जनता के जीवन में कोई परिवर्तन नहीं होने वाला है। ग़रीबी, भूखमरी जैसी तमाम समस्याओं का समाधान तो क ऐसी समतापूरक सामाजिक व्यवस्था में ही हो सकता है, जहाँ मेहनतकश जनता ही उत्पादन और राजकाज के ढांचे की स्वामी हो, और जहां पूंजी के द्वारा श्रम का और मानव के द्वारा मानव का शोषण असम्भव हो जाये!?


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