कभी-कभी पहाड़ों में हिमस्खमलन सिर्फ एक ज़ोरदार आवाज़ से ही शुरू हो जाता है

Saturday, November 2, 2013

अपनी असुरक्षा से



गर देश का अमन ऐसा होता है
कि कर्ज़ के पहाड़ो से फिसलते पत्थरो की तरह
टूटता रहे अस्तित्व हमारा
और तनख़्वाहों के मुँह पर थूकती रहे
कीमतो की बेशर्म हँसी
कि अपने रक्त में नहाना ही तीर्थ का पुण्य हो
तो हमें अमन से खतरा है

गर देश की सुरक्षा ऐसी होती है
कि हर हड़ताल को कुचलकर अमन को रंग चढ़ेगा कि वीरता बस सरहदों पर मरकर परवान चढ़ेगी
कला का फूल बस राजा की खिड़की मे ही खिलेगा
अक्ल, हुक्म के कुएँ पर रहट की तरह ही धरती सींचेगी
मेहनत, राजमहलों के दर पर बुहारी ही बनेगी
तो हमें देश की सुरक्षा से ख़तरा है।
                            -पाश



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