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Friday, April 19, 2013

बच्चों की मौत का जिम्मेदार कौन- कुपोषण या शोषण?



यूनिसेफ द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार विश्व के हर तीन कुपोषित बच्चों में से एक बच्चा भारत में रहता हैजहाँ हर साल तक़रीबन बीस लाख बच्चे (हर रोज़ तक़रीबन नौ हज़ार) पांच साल की उम्र से पहले भूख, कुपोषण और उचित स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी के कारण मर जाते हैं। परंतु सरकार, सभी नेता, उद्योगपति और पूँजीपतियों के टुकड़ाखोर इन बच्चों  की मौत का जिम्मेदार भी जनता को ही ठहराकर अपने आप को निर्दोष साबित करना चाहते हैं। इसका सबसे ताजा उदाहरण भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा कुपोषण भारत छोड़ोके नाम से चल रहा अभियान है जिसका ब्रांड एंबेसडरआमिर ख़ान को बनाया गया है। इस अभियान का मुख्य उद्देश्य जनता की आँखों में धूल झोंक कर यह सिद्ध करना है कि कुपोषण से होने वाली इन मौतों का मुख्य कारण लोगों में जागरुकता की कमी है न कि मुनाफ़े और लाभ पर केन्द्रित पूँजीवादी नीतियाँ। इसका मतलब है कि इस देश के ग़रीब और मेहनतकश लोगों के बच्चे पर्याप्त भोजन न मिलने के कारण दम नही तोड़ते, बल्कि इसलिए दम तोड़ देते हैं क्योंकि उन्हें इस बात का पता नही चलताकि उनका बच्चा कुपोषण से पीड़ित है! मीडिया द्वारा विकास पुरुषके नाम से प्रचारित नरेंद्र मोदी ने भी एक बयान में कहा था कि गुजरात की महिलाओं और बच्चों में लगातार बढ़ रहे कुपोषण का मुख्य कारण है लड़कियों का स्वास्थ्य से ज़्यादा अपने सौंदर्य पर ध्यान देना।
 ऐसे उलजुलूल बयानों से साफ़ पता चलता है कि जनप्रतिनिधि कहलाने वाली सरकारें भूख और कुपोषण से दम तोड़ते इन बच्चों के प्रति कितनी संजीदा हैं। जहाँ एक तरफ़ तो हर साल लाखों टन अनाज ज़रूरतमन्द लोगों तक पहुँचने की बजाये गोदामों में पड़े-पड़े सड़ जाता है। वहीं दूसरी तरफ़ खाद्य पदार्थों में लगातार हो रही बढ़ोत्तरी के बीच हर रोज़ 20 रुपए से भी कम में गुज़ारा करने वाले 77 फ़ीसदी लोगों  के लिए पौष्टिक भोजन तो दूर, बल्कि दो वक्त की रोटी जुटाना भी मुश्किल है।


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लगातार बढ़ रही विकास दरका राग अलापने वाली यह सरकार आज भी अपनी कुल जी.डी.पी का एक फ़ीसदी से भी कम हिस्सा स्वास्थ्य-संबंधी योजनाओं  पर खर्च करती है जबकि यूनिसेफ़ ने अपनी रिपोर्ट में साफ़ लिखा है कि कुपोषण से होने वाली इन मौतों का एक मुख्य कारण स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव है। एक तरफ़ ये सरकारें जनस्वास्थ्य सुविधाओं पर होने वाले ख़र्च को बढ़ाने की बजाये उसे लगातार घटाकर मंहगे निजी अस्पतालों-क्लीनिकों को जनता को लूटने की खुली छूटदेते हुये कुपोषण के मूल कारणों को समाप्त करने के बजाये जनता की मेहनत से ज़्यादा मुनाफ़ा निचोड़ने के लिये नीतियाँ बनाती हैं तो वहीं दूसरी तरफ़ विज्ञापन एजेंसी और आमिर खान जैसों को साथ लेकर कुपोषण दूर करने के नाम पर जनता के सामने खोखली नारेबाज़ी करके समस्याओं के मूल कारणों के प्रति विभ्रम पैदा कर रही हैं। मॅक्कन  ग्रुप, जो कि इस पूरे अभियान मे सरकार का मुख्य सहयोगी है, के प्रमुख क्लाइंटो में नेस्ले जैसी कंपनिया शामिल है जिसके हाथ ग़रीब देशों के हज़ारों बच्चों के ख़ून से रंगे हैं जो नेस्ले का दूध पीकर असमय मौत का शिकार हुये और खु़द आमिर ख़ान कोका-कोला जैसी कंपनियों के विज्ञापनों मे काम कर चुके हैं जिस पर समय-समय पर ख़तरनाक़ रसायनों को अपने पेयजल मे इस्तेमाल करने के आरोप लगते रहे हैं व अपने मुनाफ़े को बचाने के लिये ये कम्पनियां लातिन अमेरिकी देशों  में लोकप्रिय सरकारों का तख़्तापलट करवाती रही हैं!
इस तरह के अभियानों का मुख्य मक़सद लोगों की आँखों में धूल झोंकना और समस्याओं के मूल कारणों के बारे में उन्हें गुमराह करना होता है। संसद में बैठे और सरकारी आवासों में विलासिता के साथ रहने वाले इन तमाम नेताओं  की नज़र में देश की मेहनतकश जनता की जान की कोई क़ीमत नही है। उनके लिए जनता महज़ एक वोट बैंक है जिसका इस्तेमाल तमाम चुनावी पार्टियाँ हर पाँच साल में सत्ता हथियाने के लिए करती हैं। आजा़दी के इन 66 वर्षों के अनुभव से यह बात एकदम स्पष्ट हो चुकी है कि ग़रीबी, भुख़मरी, और कुपोषण का ख़ात्मा मुनाफ़े और लूट-खसोट पर टिकी इस अमानवीय व्यवस्था में संभव नही है। क्या आज हर संवेदनशील नागरिक का यह फर्ज़ नहीं बनता है कि वह ऐसी अमानवीय व्यवस्था को उखाड़ फेंके जहाँ बहुसंख्यक जनता की मेहनत पर कुछ लोग अय्याशी कर रहे है? ग़रीबी व कुपोषण का ख़ात्मा तो एक शोषणमुक्त समाज में ही संभव है जहाँ हर मेहनत करने वाले व्यक्ति को उसकी मेहनत का पूरा फल मिलता हो और जहाँ समाज के सभी बच्चों और हर नागरिक को बिना किसी भेद-भाव के एक इंसान की तरह जीने की वास्तविक आज़ादी हो।

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