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Sunday, January 20, 2013

दामिनी का संघर्ष जारी रखना होगा!


दामिनी नहीं रही! इस पूरे प्रकरण पर देश के शासक वर्ग  की विभिन्न राजनीतिक पार्टियों ने भी, जिन्होंने पिछले लोकसभा चुनाव में 286 स्त्री-विरोधी अपराधों के आरोपियों को टिकट दिया था, काफ़ी घड़ियाली आंसू बहाये! इन्हीं शासक वर्ग के कुछ नेताओं ने बयान दिया कि आखि़र हमारी भी तो बेटियाँ हैं। जी हाँ, हैं तो! पर वे सब लाल-बत्ती लगी गाड़ियों में सुरक्षित रहती हैं! उनका हश्र दामिनी की तरह नहीं होता! वे उस आम औसत स्त्री की तरह नहीं हैं जो घर, कार्यालय, फै़क्ट्री सड़क, और ख़ुद पुलिस थानों तक में सुरक्षित नहीं हैं। दामिनी के जाने के बाद भी पूरे देश में स्त्री-विरोधी अपराधों की बाढ़ जारी है। हमारे देश में हर तीस मिनट में एक बलात्कार व हर तीन मिनटमें स्त्रीयों के विरुद्ध एक अपराध होता है और स्त्रीयों पर हमला करने वाले भेडि़ये अक्‍सर छूट जाते हैं। गुजरात से लेकर कश्मीर की नीलोफ़रों और उत्तर-पूर्व की मनोरमाओं की मांओं की बूढ़ी डबडबाती नम आँखें न्याय के इंतज़ार में पथरा गईं हैं!
कुछ लोगों के द्वारा मांग  की गई कि बलात्कार के खिलाफ़ सख़्त क़ानून बनाया जाये जो कि एक सही मांग भी है पर इसके साथ ही हमें यह भी समझना होगा  कि इन सभी स्त्री-विरोधी अपराधों की असली जड़ कहाँ हैंआज के समय में इन अपराधों का मुख्य कारण है मुनाफ़े पर टिकी पूँजीवादी उत्पादन प्रणाली जहाँ मीडिया, टीवी, इंटरनेट, अख़बार आदि में स्त्रीयों  के शरीर को विज्ञापन बनाकर पूंजीपति वर्ग माल बेचता है और इस तरह उन्हें भी एक माल में यानी उपभोग और भोग-विलास की एक वस्तु मात्र  में तब्दील कर देता है। इस तरह पूरे समाज में माल बेचने वाले इस परजीवी वर्ग की घोर नारी-विरोधी कुसंस्कृति ही हावी हो जाती है। यहाँ तक कि मीडिया में बलात्कार की ख़बर तक को चटपटा बनाकर माल के रुप में पेश किया जाता है और प्रेम-विवाह की ख़बरों को लड़की भगाई गई” जैसे घटिया शीर्षकों के साथ रेटिंग और सर्कुलेशन बढ़ाने के लिये सनसनी फैलाते हुये पेश किया जाता है! फिर इसी मीडिया, टीवी, इंटरनेट, अख़बार का इस्तेमाल करके पूँजीपति वर्ग  एक 'मुक्त स्त्री', 'सुपर माडल', 'सुपर मौम' आदि के मिथ्याप्रतिमानों को गढ़ता है। मालिक़ों का वर्ग हमें बताता हैकि हमारा रोल मॉडल है बिपाशा, शकीरा, शोभा डे, साध्वी उमा भारती, और शीला दीक्षित ना कि दुर्गा भाभी, कैप्टन लक्ष्‍मी सहगल, महादेवी वर्मा, और सावित्री बाई फुले! अख़बार से लेकर रंगीन पत्र- पत्रिकाओं और फै़शन टीवी पर छाई ये स्त्री मात्र एक ब्राण्ड है एक मिथ्याछाया है! ये देश की वो औसत आम मेहनतकश स्त्री नहीं हैजो अलस्सुबह अपने बच्चों को बिलखता छोड़कर कारखानों,खेत-खलिहानों, आफि़सों, दफ़्तरों में खटने के लिये चली जाती है और फिर 10 से 16 घंटे काम करके घर वापस आकर चूल्हे-चौखट की गु़लामी में घुटने लग  जाती है! यानी कि एक तरफ़ पूँजीपति वर्ग कमज़ोर तबकों/वर्गो की स्त्रीयों के सस्ते श्रम को अपने क़ारख़ाने में निचोड़कर अकूत मुनाफ़ा कमाता है और साथ ही स्त्री की 'मुक्त देह' का विभ्रम रचता है उसकी मुक्ति का नया मिथक गढ़ता है ताकि गु़लाम को अपनी गुलामी का कभी अहसास तक ना होने पाये! दूसरी तरफ़ आज भी हमारे समाज में बर्बर पुराणपंथी दकियानूसी पितृसत्तात्मक मूल्यों का बोलबाला है जो औरत को बस सम्पत्ति का वारिस-पुत्र  पैदा करने का एक उपकरण मात्र  मानता है, उसे देवी बनाकर पूजता है, और मनुष्य के रुप में उसके सारे अधिकार उससे छीन लेता है यहाँ तक कि महज़ प्रेम करने पर उसे जान से मार देता है, और धर्म/परम्परा/संस्कृति के नाम पर उसकी आज़ादी को बुरके और घूंघट  तक सीमित कर देता है। तात्पर्य यह हैकि महज़ सख़्त क़ानून बनाकर महिलाओं के प्रति अपराध नहीं घटने वाले। ऐसा तभी हो सकता है जब लोभ-लालच की कुसंस्कृति पर टिके पूरे समाज को बदलकर नया समाज बनाया जाये जहाँ औरत एक माल, एक वस्तु, और पुत्र  पैदा करने वाला उपकरण मात्र  ना हो, जहाँ वो अपने जीवन के फ़ैसले खु़द ले सके और सम्‍पूर्ण  मानवीय गरिमा और आत्मसम्मान के साथ जी सके। स्त्री की मुक्ति ना तो चूल्हे-चौखट की गु़लामी करने में है और ना ही कमाऊ शिक्षिता नारी बनने में बल्कि उसकी मुक्ति छुपी है एक ऐसी सामाजिक क्रांति में जो उत्पादन के साधनों पर कुछ मालिक़ों का, श्रम के ऊपर पूँजी की नागपाशी सत्ता का, और नारी के ऊपर पुरुष की सत्ता का अंत कर दे! पर केवल जंतर-मंतर पर नारे लगाकर, विरोध की कुछ रस्म निभाकर, इंटरनेट-फ़ेसबुक पर दमिनी के प्रति मात्र सहानुभूति प्रकट करके ऐसा समाज नहीं बनेगा। उसके लिये हमें सकर्मक कर्म भी करना होगा! ऐसा समाज बनाने के लिये हमें व्यवस्था परिवर्तन की लम्बी लड़ाई धैर्यपूर्वक ज़मीन पर सतत् जारी रखनी होगी। दामिनी के संघर्षको हमें जारी रखना होगा तभी उस पर विस्मृति की धूल और राख नहीं पड़ने पायेगी और यही उस बहादुर बेटी के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।





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