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Sunday, December 16, 2012

भ्रष्टाचार के विरुद्ध ’‘नारों’‘ और ’‘सनसनी’‘ के बीच गुम आम मेहनतकश जनता की माँगे!!


भ्रष्टाचार के विरुद्ध अन्ना-केजरीवाल और रामदेव के आन्दोलन का ज्वार शान्त हो चुका है लेकिन जन लोकपाल की माँग पूरी नहीं हो सकी। इसी बीच केजरीवाल अपनी राजनीतिक पार्टी बनाकर कुछ घोटालों को मीडिया में उछालकर सनसनी फैला रहे हैं। भ्रष्टाचार एवं काले धन के विरुद्ध इन आन्दोलनों ने लोगों के सामने यह सिद्ध करने की भरसक कोशिश की है कि हर समस्या का कारण कुछ और नहीं सिर्फ़ और सिर्फ़ भ्रष्टाचार है। यह सभी टोलियाँ देश में लगातार बढ़ रही बेरोज़ग़ारी और ग़ैर-बराबरी पर अपनी कोई स्पष्ट राय व्यक्त नहीं करतीं, जबकि इसके कारण आज करोड़ों नौजवान और ग़रीब लोग काम और आजीविका की तलाश में अपना समय और मेहनत बर्बाद करने के लिए मजबूर हैं। न ही यह लोग किसी को बताते हैं कि जनता की इस मजबूरी का फ़ायदा उठाकर अनेक देशी-विदेशी कम्पनियों सहित अनेक दलाल और ठेकेदार कम से कम वेतन देकर मोटा मुनाफ़ा हड़प रहे हैं। और इसी लूट के पैसों से इसे जारी रखने के लिये भ्रष्ट नेताओं-अफ़सरों की जेबें भरी जाती हैं।
इन लोगों द्वारा खड़ी की गई समस्याओं के भ्रामक मायाजाल के परे मौजूद पूरी व्यवस्था को देखें तो जनता का सबसे बड़ा हिस्सा उत्पादन के कामों में लगा है। और हर चीज़ का उत्पादन निजी मालिकाने में होता है। आज पूरे देश की हालत यह है कि एक तरफ़ छोटे-छोटे ठेकेदारों दलालों से लेकर बड़ी-बड़ी देशी-विदेशी कम्पनियाँ करोड़ों का मुनाफ़ा बटोर रही हैं, और दूसरी तरफ़ 12 से 16 घण्टे गु़लामों की तरह खटने के बाद भी समाज का मेहनतकश हिस्सा (जो सबसे बड़ा हिस्सा है..) आराम की जि़न्दगी तो दूर, बल्कि एक इंसान की तरह भी नहीं जी पा रहा है। इस मुनाफ़ा-केन्द्रित व्यवस्था को मैनेज करने का काम वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था कर रही है, जिससे कुछ लोगों के मुनाफ़े के लिये समाज की आम जनता की मेहनत की लूट को सुचारू रूप से जारी रखा जा सके। अन्ना-केजरीवाल-रामदेव के आन्दोलन शोषण और गै़रबराबरी पर खड़ी इस व्यवस्था को मैनेज करने के लिये बनी सरकार में भ्रष्ट लोगों की जगह ईमानदार लोगों को लाने की माँग करके इसे सुधारने के झूठे सपने आम जनता को दिखा रहे हैं। जिससे कि बहुसंख्यक जनता के शोषण पर खड़ी व्यवस्था का जीवनकाल बढ़ाया जा सके।
केजरीवाल की आम आदमी पार्टी की माँगों में भी पहली माँग है कि देश की व्यवस्था से भ्रष्टाचार को हटाने के लिये वह एक मजबूत लोकपाल बनाएँगे और घूसख़ोर अफ़सरों के खि़लाफ़ तुरन्त कार्यवाही की जाएगी।जिस व्यवस्था से भ्रष्टाचार को समाप्त करने की बातें यह कह रहे हैं यह वही व्यवस्था है जिसमें कोई भ्रष्टाचार न होने पर भी (जो कि व्यवहारिक रूप से संभव नहीं है) समाज की सम्पत्तिहीन बहुसंख्यक आम जनता मुठ्ठी भर सम्पत्तिधारकों की तिजोरियाँ भरने के लिये खटने के लिये मजबूर होगी। व्यक्तिगत स्तर पर घूसख़ोरी को रोकने की बात केजरीवाल की माँगों में शामिल है, लेकिन क़ानूनी रूप से होने वाले पूँजीवादी शोषण पर इन्होंने कोई सवाल नहीं उठा या है। जबकि इसके कारण आज देश की 93 फ़ीसदी ठेके पर काम करने वाली मज़दूर आबादी के लिये कोई श्रम क़ानून लागू नहीं होता, और वे कम्पनियों की मनमानी शर्तों पर काम करने के लिये मजबूर हैं जो कि सबसे बड़ा भ्रष्टाचार है! जिसके कारण आज देश की लगभग 45 करोड़ से अधिक मेहनत करने वाली जनता रोज़ग़ार-आवास-शिक्षा-चिकित्सा जैसी मूलभूत सुविधाओं से बेदख़ल होकर जी रही हैै। यह स्वराज और व्यवस्था में जनता की भागीदारी की बात कर रहे हैं, टोपी पर ’‘आम आदमी’‘ और आम आदमी पार्टी के नाम से संसदीय बहसबाजी के अड्डे में घुसने का प्रयास भी कर रहे हैं, लेकिन इनकी माँगों में उस आम आदमी की माँगों को कोई स्थान नहीं दिया गया है जो देश की सारी समृद्धि के लिये अपने ख़ून-पसीने को एक कर मेहनत करता है। यह लोग जिसे आम आदमी मानते हैं उसमें 20 रूपये प्रतिदिन से भी कम पर जीने वाले देश के वे ग़रीब लोग शामिल नहीं है जो समाज की कुल आबादी का 77 प्रतिशत हिस्सा यानि 84 करोड़ है।
सिर्फ़ लोकरंजक भ्रामक नारेबाज़ी या कुछ व्यक्तियों पर केन्द्रित मुद्दे लेकर सनसनी फ़ैलाने से समाज और लोगों की परिस्थितियों को नहीं बदला जा सकता। संजीदगी से सोचने वाले समाज के सभी नौजवानों और नागरिकों को पूरे समाज मे व्याप्त ग़ैर-बराबरी और कुछ व्यक्तियों द्वारा अनेक लोगों का शोषण करने वाली व्यवस्था में आमूलगामी क्रान्तिकारी बदलाव के लिये एक ठोस समझ के साथ आगे बढ़कर प्रचार-प्रसार करना होगा।



2 comments:

  1. पूंजीवाद के खिलाफ बोलने वालों ने भी पूंजीपतियों का दामन पकड़ रखा है. हालत बहुत खराब है.
    आपकी पत्रिका अच्छी है.
    शुक्रिया.

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  2. बहुत सारगर्भित आलेख..

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